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मत्स्य पालन हेतु प्रथम आवश्यकता उचित जलक्षेत्र की होती है। अपेक्षित जलराशि उपलब्ध होने पर दूसरी स्थिति उसके समुचित प्रबन्ध की आती है। साधारण तौर पर देखा जाय तो तालाब एक ऐसी भौगोलिक संरचना है जिसमें चारों ओर से पानी आकर निचले व गहरे स्थान में एकत्र हो जाता है। कुछ समय उपरान्त यह पानी सूखने लगता है। मत्स्य पालन हेतु समुचित प्रबंध के माध्यम से अप्रवाधित तालाबों में एकत्रित पानी को संरक्षित कर प्रयोग किया जाता है। मत्स्य संवर्धन में तालाब निर्माण एवं उसका आधार महत्वपूर्ण घटक है। तालाब निर्माण के लिये मिट्टी की गुणवत्ता का ज्ञान भी आवश्यक है। मत्स्य हैचरी, पुर्न परिभ्रमण जल जीव पालन पद्धति, रियरिगं यूनिट आदि के ले-आऊट इत्यादि की जानकारी प्राप्त कर निर्माण करने में निर्माण के वाद की परेशानियों से बचा जा सकता है।

मत्स्य संवर्धन अन्तर्गत प्रथम आवश्यकता जल की है। जल का प्रंवधन मत्स्य प्रजाति वार संवर्धन  का ज्ञान, विभिन्न मत्स्य प्रजातियों का संवर्धन सही तकनीकी अपना कर कम लागत में अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। मत्स्य संवर्धन तालाबो तक सीमित नहीं हैं बल्कि केज/पेन में, पुर्न परिभ्रमण जल जीव पालन पद्धति में,जलाशयो में, समन्वित मत्स्य संवर्धन तकनीकी द्वारा किया जा सकता है। मत्स्य संवर्धन मेजर कार्प तक सीमित नहीं हैं। मछली की अन्य प्रजातियों यथा पंगेशियस, तिलापिया संर्बधन, मीठा जल झींगा, केकडा का उत्पादन संसाधनो, परिस्थित एवं बाजार की मांग कें अनुसार व्यावसायिक स्तर पर कर सकते हैं। जैविक मत्स्य उत्पादन भी आज की नई बाजार में मांग हैं।

i) तालाब निर्माण

iii) संबर्धन

iv) आहार व्यवस्था

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